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उ॒षसः॒ पूर्वा॒ अध॒ यद्व्यू॒षुर्म॒हद्वि ज॑ज्ञे अ॒क्षरं॑ प॒दे गोः। व्र॒ता दे॒वाना॒मुप॒ नु प्र॒भूष॑न्म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uṣasaḥ pūrvā adha yad vyūṣur mahad vi jajñe akṣaram pade goḥ | vratā devānām upa nu prabhūṣan mahad devānām asuratvam ekam ||

पद पाठ

उ॒षसः॑। पूर्वाः॑। अध॑। यत्। वि॒ऽऊ॒षुः। म॒हत्। वि। ज॒ज्ञे॒। अ॒क्षर॑म्। प॒दे। गोः। व्र॒ता। दे॒वाना॑म्। उप॑। नु। प्र॒ऽभूष॑न्। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:55» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बाईस ऋचावाले पचपनवें सूक्त का आरम्भ है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (उषसः) प्रातःकाल से (पूर्वाः) प्रथम हुए (व्यूषुः) विशेष करके वसते हैं वह (महत्) बड़ा (अक्षरम्) नहीं नाश होनेवाला (महत्) बड़ा तत्त्वनामक (गोः) पृथिवी के (पदे) स्थान में (वि, जज्ञे) उत्पन्न हुआ जो (एकम्) अद्वितीय और सहायरहित (देवानाम्) पृथिवी आदिकों में बड़े (असुरत्वम्) प्राणों में रमनेवाले को (प्र, भूषन्) शोभित करता हुआ (अध) उसके अनन्तर (देवानाम्) विद्वानों के (व्रता) नियम (उप) समीप में (नु) शीघ्र उत्पन्न हुए, उसको आप लोग जानिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो बिजुली नामक वस्तु को प्रातःकाल से सेवन करते हैं, उनके सदृश वर्त्तमान एक द्वितीयरहित ब्रह्म प्रकृति आदि पदार्थों में व्याप्त हुआ वह सबको धारण करता है, वही सब करके उपासना करने योग्य है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

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अन्वय:

यदुषसः पूर्वा व्यूषुस्तन्महदक्षरं महत्तत्वाख्यं गोः पदे वि जज्ञे यदेकं देवानाम्महदसुरत्वं प्रभूषन्नध देवानां व्रतोप नु जज्ञे तद्यूयं विजानीत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उषसः) प्रभातात् (पूर्वाः) (अध) अथ (यत्) (व्यूषुः) विवसन्ति (महत्) (वि) (जज्ञे) जातम् (अक्षरम्) (पदे) स्थाने (गोः) पृथिव्याः (व्रता) नियमाः (देवानाम्) विदुषाम् (उप) समीपे (नु) सद्यः (प्रभूषन्) अलङ्कुर्वन् (महत्) (देवानाम्) पृथिव्यादीनाम् (असुरत्वम्) यदसुषु प्राणेषु रमते तत् (एकम्) अद्वितीयमसहायम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - यद्विद्युदाख्यमुषसः सेवन्ते तद्वद्वर्त्तमानमेकमद्वितीयं ब्रह्म प्रकृत्यादिषु व्याप्तं तत्सर्वं धरति तदेव सर्वैरुपास्यमस्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात दिवस, रात्र, विद्वान, अंतरिक्ष, पृथ्वी, राजधर्म व ईश्वर यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जे विद्युतचे उषःकालापासून ग्रहण करतात त्याप्रमाणे एक अद्वितीय ब्रह्म, प्रकृती इत्यादीमध्ये व्याप्त असून सर्वांना धारण करतो तोच सर्वांचा उपासनीय आहे. ॥ १ ॥